Our सिर्फ एक निर्णय हमारा जीवन बदल सकता है।
हमारे निर्णय से हम कैसे अपना संसार छोटा करते जाते हैं लेकिन एक सही निर्णय से हम सारे संसार को जान भी सकते हैं और पूरे जीवन का रूपांतरण भी कर सकते हैं।
जब भी हम कोई निर्णय लेते हैं तो उस निर्णय से हमारे लिए संसार दो भागों में बंट जाता है। एक वह जिसको हम जानते हैं क्योंकि वह हमारे निर्णय का हिस्सा है इसलिए उसे हम जी रहे हैं। दूसरा वह जिसको हम जानते यदि इसके विरुद्ध निर्णय लिया होता। इसी प्रकार हमारे निर्णय हमको और छोटे संसार में सीमित करते जाते हैं। और यदि हमारे सारे निर्णय अध्यात्म की दिशा के लिए सही साबित हुए तो हम आत्मज्ञान को प्राप्त हो जाते हैं। आत्मज्ञान के इस अनुभव को मैं Philosia कहकर बताता हूँ। इसमें हमने जो निर्णय नहीं लिए उन सबको हमने यदि लिया होता और तो जो भी जीवन जिया होता, और तब हमारे लिए संसार क्या होता वह सारे संसार हमको एक साथ दिखाई दे जाते हैं।
इसका मतलब यह भी हुआ कि जब भी कोई व्यक्ति ओशो को मिलता होगा तब ओशो को पता रहता था कि यह व्यक्ति कम से कम कोई एक निर्णय ग़लत लेकर जीवन जी रहा है। और वह यदि अभी एक निर्णय सही ले लेगा यानी उनका शिष्य बन जाएगा तो यह हो सकता है कि उनकी उपस्थिति में वह आत्मज्ञान को प्राप्त हो जाए। लेकिन फिर भी यदि कोई शिष्य बनने के बाद बरसों उनके साथ रहने के बाद भी उनसे प्रश्न पूछता कि आप हमारे बारे में क्या सोंचते हैं तो ओशो कहते थे कि तुम्हारा जीवन एक जोक से, चुटकुले से ज़्यादा नहीं है। यह इसलिए क्योंकि एक सही निर्णय करने के बाद फिर गलत निर्णय लेने लग गए। जो सूझा रहे होंगे वो उनको प्रयोग करने को, वे उनको नहीं करते होंगे।उनको लग रहा होगा ओशो के सत्संग में किसी करामात या जादू से उनको भी आत्मज्ञान मिल जाएगा इससे तो संसार में ही रहते तो ज़्यादा ठीक था।
मेरे अनुभव में भी यह आया था कि आत्मज्ञान का अनुभव जैसे एक क्षण के लिए हमारे शरीर का फोटोन हो जाना है। क्योंकि उसके बाद समय और स्थान के फासले खत्म हो जाते हैं। और इसीलिए आत्मज्ञान के बाद हमको अपने सारे संसार जो हमने जिए होते वह एक साथ स्पष्ट दिखाई देने लगते हैं।