Kumbh कुंभ स्नान को आए श्रद्धालुओं के लिए ईश्वर से मेरी विशेष प्रार्थना 🙏
प्रार्थना यह नहीं है कि कुंभ के श्रद्धालुओं की इच्छाओं की पूर्ति हो जाए, बल्कि यह है कि ये तकलीफें हमारे लिए भीतर की यात्रा के लिए इशारा बनें। सुख भीतर है।
कुंभ का मेला लगा हुआ है, श्रद्धालु आ रहे हैं और संगम में डुबकी लगाकर वापस जा रहे हैं। एक महीने से ऐसे आने जाने वालों का ताँता लगा हुआ है। कुछ शाही स्नान के दिन हैं, उस दिन डुबकी लगाने से ज्यादा पुण्य मिलता है। इसलिए उन दिनों करोड़ों लोग आकर डुबकी लगाकर जा रहे हैं।
जितनी बड़ी भीड़ होती है आदमी का अहंकार उतना छोटा हो जाता है। इसलिए डुबकी लगाने के लिए आने वाले श्रद्धालु इतनी बड़ी संख्या में आकर जाते रहे हैं और कोई बड़ी घटना कभी नहीं घटी। लेकिन इस बार की बेस्ट कुछ अलग है। इसलिए मुझे भी इन श्रद्धालुओं के लिए विशेष प्रार्थना करने की जरूरत महसूस हुई।
मुझे पता है कि मेरे प्रार्थना करने से सीधे सीधे कुछ नहीं होने वाला क्योंकि व्यक्ति को अपने उत्थान के लिए स्वयं ही निर्णय लेना होता है, और स्वयं ही प्रयत्न करने होते हैं। लेकिन इतने सारे लोग जो इतनी उम्मीदें लेकर डुबकी लगाने के लिए घर से निकले है उसमें मेरी प्रार्थना और जुड़ जाएगी तो उनमें से शायद कोई एक आध्यात्मिक जीवन की राह पकड़ेगा।
भारत की मौजूदा परिस्थितियाँ समाज के एक बड़े तबके के लिए जीवन निर्वाह करना अपने आप में इतना कठिन हो गया है कि उसके लिए जीवन और मौत में ज़्यादा अंतर रह नहीं गया है। शायद लोग जी इसलिए रहे हैं क्योंकि मौत नहीं आई, बाक़ी जीवन में कोई रस या जीवन से कोई उम्मीद नहीं बची है। ऐसे में कुंभ स्नान करना एक जुआ है उनके लिए, की कभी स्नान करके वापस जीवित आ गए तो जिंदगी में कोई बदलाव आ जाए। और शायद इसीलिए कोई ट्रेन आकर चली गई और लोग उसमें नहीं चढ़ पाए तो अगली ट्रेन के एसी कोच की खिड़की तोड़कर भी घुसना पड़े तो वह भी करते दिखे लोग।
लोगों की यह भीड़ मुझे धर्म के लिए कम और धर्म के नाम पर भी एक जुआ खेलने की ज़्यादा लगती है। क्योंकि बाक़ी सब तो उसने प्रयत्न कर लिए, पढ़ लिख भी गए तो नौकरी के पिछले दस सालों से कोई पते नहीं। और भी बहुत सी तकलीफें जिनके लिए छोटे मोटे प्रयत्न तो त्योहारों पर इतने सालों में किए ही होंगे।
इसीलिए इतनी तकलीफें उठाकर इतने लोग आ रहे हैं इसपर सरकार को खुश होने की बजाय एक बार इस नजरिये से भी देखना चाहिए कि क्या जनता वाकई इतनी हताश हो चुकी है? कि उनके लिए जान की बाजी लगाने जैसी स्थिति बन जाए तो भी वह तैयार है!
लेकिन मेरा भरोसा मेरी प्रार्थना पर ज़्यादा है, और इसलिए मुझे लगा कि ना सिर्फ़ मैं प्रार्थना करूँ लेकिन इसको लिखूँ भी, ताकि कोई और भी इस तरह की प्रार्थना करके उन सभी श्रद्धालुओं के जज़्बे को अपना सलाम कर सके। जिससे कोई एक यह समझ सके कि बाहरी परिस्थितियों के बदलने से व्यक्ति की जिंदगी में सुख नहीं आता। भीतर के परिवर्तन से सुख आता है, यदि कुंभ में संगम पर स्नान कर आए हो तो अब भीतर ही बह रही है गंगा। और ऐसा ना हो की भीतर मृत्यु पर्यंत बहती रहे और डुबकी ना लगा पाओ। होंश पूर्वक, जागरूक होकर, साक्षी या दृष्टा होकर किया गया हर काम भीतर की गंगा में डुबकी के समान पुण्य देने वाला है।
जितनी तकलीफें ये ग़रीब लोग उठा रहे हैं उतनी यदि इस देश के अमीर लोग अपने धन से उद्योग स्थापित करने के लिए उठायें तो यह उनका पुरुषार्थ कहलायेगा। क्योंकि भाग्य से जिसको धन, पद मिला है उसके लिए पुरुषार्थ से तरक्की के द्वार खुलेंगे।
मेरे अनुभव से कुछ सुझाव जो आपको होंश या सद्बुद्धि जगाने में मदद कर सकते हैं:-
द्रष्टा (यानी भीतर की आँख से) होने का चमत्कार यह है कि जब तुम (आँख बंद करके अपने ) शरीर को देखते हो, तो तुम्हारा द्रष्टा अधिक मजबूत होता है। जब तुम अपने विचारों को देखते हो, तो तुम्हारा द्रष्टा और भी मजबूत होता है। और जब अनुभूतियों को देखते हो, तो तुम्हारा द्रष्टा फिर और मजबूत होता है। जब तुमअपनी भाव-दशाओं को देखते हो, तो द्रष्टा इतना मजबूत हो जाता है कि स्वयं बना रह सकता है — स्वयं को देखता हुआ, जैसे किअंधेरी रात में जलता हुआ एक दीया न केवल अपने आस-पास प्रकाश करता है, बल्कि स्वयं को भी प्रकाशित करता है!
लेकिन लोग बस दूसरों को देख रहे हैं, वे कभी स्वयं को देखने की चिंता नहीं लेते। हर कोई देख रहा है — यह सबसे उथले तल परदेखना है — कि दूसरा व्यक्ति क्या कर रहा है, दूसरा व्यक्ति क्या पहन रहा है, वह कैसा लगता है। (और देखा देखी में मृत्यु के पार जा सके ऐसी संपत्ति को खो रहा है, जबकि जीवन उस मृत्यु के पार जा सके ऐसी संपत्ति खोजने के लिए ही मिला है। हर व्यक्ति देख रहा है — देखने की प्रक्रिया कोई ऐसी नई बात नहीं है, जिसे तुम्हारे जीवन में प्रवेश देना है। उसे बस गहराना है — दूसरों से हटाकर स्वयं की आंतरिकअनुभूतियों, विचारों और भाव-दशाओं की ओर करना है — और अंततः स्वयं द्रष्टा की ओर ही इंगित कर देना है।
लोगों की हास्यास्पद बातों पर तुम आसानी से हंस सकते हो, लेकिन कभी तुम स्वयं पर भी हंसे हो? कभी तुमने स्वयं को कुछ हास्यास्पदकरते हुए पकड़ा है? नहीं, स्वयं को तुम बिलकुल अनदेखा रखते हो — तुम्हारा सारा देखना दूसरों के विषय में ही है, और उसका कोईलाभ नहीं है।
अवलोकन की, अवेयरनेस की इस ऊर्जा का उपयोग अपने अंतस के रूपांतरण के लिए कर लो । यह इतना आनंद दे सकती है, इतने आशीष बरसा सकती है कि तुम स्वप्न में भी नहीं सोच सकते। सरल सी प्रक्रिया है, लेकिन एक बार तुम इसका उपयोग स्वयं पर करने लगो, तो यह एक ध्यान बन जाता है।
किसी भी चीज को ध्यान बनाया जा सकता है!
अवलोकन तो तुम सभी जानते हो, इसलिए उसे सीखने का कोई प्रश्न नहीं है, केवल देखने के विषय को बदलने का प्रश्न है। उसे करीबपर ले आओ। अपने शरीर को देखो, और तुम चकित होओगे।
अपना हाथ मैं बिना द्रष्टा हुए भी हिला सकता हूं, और द्रष्टा होकर भी हिला सकता हूं। तुम्हें भेद नहीं दिखाई पड़ेगा, लेकिन मैं भेद कोदेख सकता हूं। जब मैं हाथ को द्रष्टा-भाव के साथ हिलाता हूं, तो उसमें एक प्रसाद और सौंदर्य होता है, एक शांति और एक मौन होताहै।
तुम हर कदम को देखते हुए चल सकते हो, उसमें तुम्हें वे सब लाभ तो मिलेंगे ही जो चलना तुम्हें एक व्यायाम के रूप में दे सकता है, साथही इससे तुम्हें एक बड़े सरल ध्यान का लाभ भी मिलेगा।
-ओशो ध्यानयोग: प्रथम और अंतिम मुक्ति copyright Osho international Foundation, Pune, India
सांसारिक जीवन जीते हुए ओशो के प्रयोगों को जीवन में उतरकर जो मैंने आध्यात्मिक यात्रा की है उसके अनुभव से कुछ सुझाव:- सांसारिक जीवन को जीवन संपूर्णता के साथ जीना, जीवन को एक प्रामाणिक रूप में जीना यानी भीतर बाहर एक और ईमानदारी से जीना, लोगोंकी बिना भेदभाव के निःस्वार्थ भाव से सेवा करना और सभी बंधनों (धार्मिक, शैक्षिक, जाति, रंग आदि) से मुक्त होना ये तीन मेरे जीवन में महत्वपूर्ण उत्प्रेरक साबित हुए हैं जो किसी को गहराई तक गोता लगाने में मदद कर सकते हैं।
मैंने सुबह दांतों पर ब्रश करते समय प्रयोग के तौर पर शुरू किया गया भीतर की आँख खोलने का प्रयोग या होंश का प्रयोग विचार शून्य अवस्था का अनुभव प्राप्त करने का उपाय ना रहकर, अब होंश का प्रयोग ना मेरे लिए काम करने का तरीका हो गया है। हो सकता है कि आपको भी यह उपयुक्तलगे अन्यथा अधिकांश लोगों के लिए ओशो का सुझाया गतिशील ध्यान है। लगभग 500 साल पहले भारतीय रहस्यवादी गोरखनाथद्वारा खोजी गई और ओशो द्वारा आगे संशोधित की गई 110 अन्य ध्यान तकनीकें हैं जिनका प्रयोग किया जा सकता है, और जिससे लाभ होता दिखे उसका नियमित जीवन में अभ्यास किया जा सकता है। (इसे ओशो की किताब “प्रीतम छवि नैनन बसी”, चेप्टर #11 “मेरा संदेश है, ध्यान में डुबो” से लिया गया है। इस किताब को फ्री पढ़ने के लिए osho.com पर लॉगिन करके Reading>online libravy पर हिन्दी बुक्स सेलेक्ट करें।))
नमस्कार ….. मैं अपनी आंतरिक यात्रा के व्यक्तिगत अनुभवों से अपनी टिप्पणियाँ लिखता हूँ। इस पोस्ट में दुनिया भरके रहस्यवादियों की शिक्षाएँ शामिल हो सकती हैं जिन्हें मैं आज भी मानने लायक समझता हूँ। मेरे बारे में अधिकजानकारी के लिए और मेरे साथ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जुड़ने के लिए, मेरे सोशल मीडिया लिंक से जुड़ने केलिए वेबसाइट https://linktr.ee/Joshuto पर एक नज़र डालें, या मेरे यूट्यूब चैनल की सदस्यता लें और/यापॉडकास्ट आदि सुनें।
Originally published at https://philosia.in on February 24, 2025.