Fellow आध्यात्मिक यात्रा की सहयात्री मेरी पत्नी से मुलाकात।
जीवन एक यात्रा है और इसमें किसी पूर्व सहयात्री से मिलना बहूत महत्वपूर्ण घटना है।
जीवन एक यात्रा है और इसमें किसी पूर्व सहयात्री से मिलना बहूत महत्वपूर्ण घटना है। यदि उनमें से कोई व्यक्ति आध्यात्मिक यात्रा में निरंतर आगे बढ़ रहा है तो ईश्वर का प्रसाद हमारे ऊपर इन्हीं क्षणों में बरसता है। मेरी इस छोटी सी यात्रा में मैंने पाया कि हमारे सहयात्रियों को हमको तीन तलों पर समझना या तालमेल बिठाना होता है। मनोवैज्ञानिक, मानसिक और शारीरिक तल और इसका एहसास मुझे अपनी आध्यात्मिक यात्रा के दौरान किताबें पढ़ने से हुआ।
आध्यात्मिक यात्रा के कुछ महत्वपूर्ण सहयात्रियों में से एक, मेरी पत्नी, से करीब 13 साल बाद छोटी मुलाकात। और इस मुलाकात का मैंने उपयोग यह किया कि उसके सहयोग का प्रसाद पूरा की पूरा ही उँढेल दिया, इस उम्मीद से की शायद उसकी भीतर की यात्रा में कुछ सहयोगी हो सके।
कुछ अपने हाथ का बना हुआ खिलाया और मैंने भी उसके हाथ का बना खाया। जैसा कि हम पहले करते थे, आपसी स्वीकृति से एक टाइट हग, जिसे मैं ऊर्जा के ट्रांसफर के लिए अक्सर उपयोग करता था और हूँ। कुछ मन के गहरे दबाए हुए भावों को वेंटिलेट कर सके इसके लिए उसको, उसके विचारों को ध्यानपूर्वक सुना, ताकि वह हल्की होकर जा सके। कहीं मुझे बिछड़ने के बाद लगा कि मैं उसे समझ नहीं पाया तो उसको यह बताना कि अब मैं उसे कुछ समझ सका हूँ, जिससे आगे फिर कभी यदि मिलेंगे तो उसे यह भी पता रहे।
लेकिन मैंने पाया की अधिकतर ऐसे मौक़े लोग बुरी तरह चूक ही जाते हैं। क्योंकि वे अपने ख़ुद के बनाये हुए विचारों की क़ैद से मुक्त होने का कोई प्रयास नहीं कर रहे होते हैं, बल्कि उसको और अधिक मजबूती प्रदान करते दिखते हैं। फिर भी कभी ना कभी सब ही अपने गंतव्य तक पहुँच भी जाते हैं। तब ईश्वर की हम सबके ऊपर असीम अनुकंपा, असीम प्रेम का अनुभव और अधिक तीव्रता से होता है।
अपने साथी से बिछुड़कर 13 साल बाद मिलना एक अद्भुत अनुभव है। और इसकी क़ीमत जो चुका सकेगा वही इस अनुभव को महसूस भी कर सकेगा। इतने साल बाद दोनों में हुए परिवर्तन को मैं स्पष्ट देख सका और कह सकता हूँ कि साथ साथ रहते तो हम दोनों में ये परिवर्तन आना असंभव थे। और अब अंतर इतना स्पष्ट हो गया है कि पति-पत्नी के संबंध बनाये रखना असंभव ही है। इसलिए दोनों ने दोस्त के रूप में बाक़ी की ज़िंदगी एक दूसरे से मिलते रहने, बातचीत करते रहने और सहयोग करने का निर्णय लिया।
मेरी कोशिश रही कि उसको सब तरह से यह विश्वास दिला सकूँ कि भविष्य में जीवन की किन्हीं विपरीत परिस्थितियों में उसके लिए अब उसके बच्चों के घर उसके अपने घर हैं। मेरा मानना है कि मेरे बच्चे ने भी अपना सर्वश्रेष्ठ देकर उसकी इस उम्मीद को और बढ़ाया होगा। हम सब अलग अलग होकर भी एक हैं यह एहसास मुझे होता रहा। इसलिए कोई मेरे पास नहीं है तो उसकी कमी मुझे महसूस नहीं होती।
ओशो की किताब अमृत वर्ष केतीसरे प्रवचन सत्य की वर्षा में कहते हैं :-
जब हम अपने को “मैं” कहते हैं, हम अपने को एक इकाई, एक entity (एनटायटी) मान लेते हैं, हम एक टुकड़ा मान लेते हैं। इस जगत में कोई चीज टूटी हुई नहीं है।
मैं एक फूल से आपको परिचय कराऊं, मैं एक फूल के पास ले जाऊं और आप कहें यह फूल बहुत सुंदर है, और आप उस फूल को प्रेम करने लगें, तो मैं आपसे कहूंगा, क्या सिर्फ फूल को ही प्रेम करिएगा, उस डाल को नहीं जो फूल के पीछे है। अगर आपका प्रेम सच्चा है, फूल आपको सुंदर मालूम हो रहा है, तो फूल में थोड़ा प्रवेश करिए, तो फूल कोई अकेला थोड़े ही है, फूल के भीतर घुसेंगे तो डाल मिलेगी, डाल न हो तो फूल नहीं हो सकता।और डाल के भीतर प्रविष्ट होंगे, तो वृक्ष मिलेगा। वृक्ष न हो, तो डाल नहीं हो सकती। और वृक्ष में भीतर प्रविष्ट होंगे, तोअदृश्य जड़ें मिलेंगी, जो दिखाई नहीं पड़तीं, वे न हों तो वृक्ष नहीं हो सकता। और अगर जड़ों में भी भीतर प्रविष्ट हो जाएं, तो भूमि मिलेगी, प्रकाश मिलेगा, सूर्य मिलेगा, आकाश मिलेगा, और तब पता चलेगा कि उस फूल के भीतर सूरज मौजूद है। और तब पता चलेगा कि उस फूल के भीतर सारी पृथ्वी मौजूद है। और तब पता चलेगा उस फूल के भीतर सारा ब्रह्मांड मौजूद है।
उस फूल को जो इकाई समझता है, वह नासमझ है, और जो अपने को भी इकाई समझ लेता है, वह भी नासमझ है। यह सारा का सारा जगत एक छोटे से बिंदु पर भी पूरा का पूरा स्पंदित हो रहा है। एक छोटे से प्राणमें भी यह सारा जगत स्पंदित हो रहा है। यह असंभव है कि मेरे इस छोटे से प्राण में इस पूरे जगत का हाथ न हो।
अगर कहीं कोई परमात्मा है तो उसे छोड़ कर मैं कहने का और कोई अधिकारीनहीं। और जो मैं कहता है वह सबसे बड़ा कुफ्र, सबसे बड़ा पाप करता है।
इस जगत में कुछ भी अलग-अलग नहीं है, सब जुड़ा है और सब इकट्ठा है, यह सारा जगत एक टोटेलिटी है। एक समग्रता है, और उस समग्रता को अनुभव करना, धर्म का अनुभव है और अपने को अलग अनुभव करना अधर्म का अनुभव है। सारा अधर्म इससे पैदा होता है कि मैं अलग हूं ।
-ओशो, अमृत वर्षा, #3 सत्य की वर्षा
अमृत वर्षा, चौथा प्रवचन-जागरण का आनंद
मेरे प्रिय आत्मन्!
कल दोपहर को कुछ मित्रों से मैं बात करता था और उनको मैंने एक कहानी कही, और फिर मुझे ख्याल आया कि वह कहानी मैं आपको भी कहूं और उससे अपनी चर्चा को आज प्रारंभ करूं।
एक छोटे से गांव में, रमजान के दिन थे, मुसलमानों की प्रार्थना के दिन थे, आधी रात को एक ढोल पीटने वाले ने एक घर के सामने जाकर ढोल पीटा। वह एक फकीर था। और लोग प्रार्थना के लिए उठ जाएं सुबह-सुबह, इसलिए गांव में जाकर ढोल पीट रहा था। लेकिन ढोल तो सुबह पीटा जाता है। अभी आधी रात थी और उसने एक मकान के सामने जाकर आवाज दी और ढोल पीटा। और मकान में पूरा अंधकार था, उसमें कोई दीया न जलता था, और बाहर कोई रोशनी नहीं आती थी। एक राहगीर ने उससे पूछा कि आधी रात को, अभी तो सुबह नहीं हुई, लोगों को उठाने से क्या प्रयोजन है? और एक ऐसे मकान के सामने जिससे कोई प्रकाश न निकलता हो, जिसमें कोई दीया न जलता हो, जिसमें कोई है भी यह भी पता नहीं, उसके सामने आवाज करने का क्या अर्थ है? क्या तुम्हारा मस्तिष्क ठीक नहीं कि आधी रात को लोगों को जगाए दे रहे हो?
उस फकीर ने कहा कि अगर आपकी बात पूरी हो गई हो तो मैं आपसे दो शब्द कहूं?
एक तो मैं आपको यह कहूं, जिन्हें सुबह उठना है उन्हें आधी रात में जाग जाना चाहिए। और सुबह ही हो जाएगी तो फिर मैं जगाऊंगा, जागने में बहुत समय लग जाता है, सुबह बीत जाएगी, इसलिए आधी रात को उठाने आ गया हूं। और जिस घर के भीतर एक भी दीया नहीं जल रहा है उस घर के लोग बहुत गहरे सोए होंगे, बहुत देर उनको उठने में लगेगी, इसलिए आधी रात को उस द्वार पर ढोल पीटता हूं।
और जो कान न सुन सकते हों, और जो आंखें न देख सकती हों, और जो लोग सोए हों, अगर हम उन्हें जगाना छोड़ दें और उनके कानों तक आवाजों को पहुंचाना छोड़ दें, तो दुनिया का क्या होगा?
उसने अदभुत बात कही, उसने बड़े अर्थ की बात कही। उसने कहा कि आधी रात को जगाने आ गया हूं ताकि वे प्रभात के पहले जग जाएं। और जिस घर में बिल्कुल अंधकार है उस घर पर ज्यादा मेहनत करूंगा। क्योंकि अंधकार का अर्थ है कि लोग बहुत गहरे सोए होंगे, और उनकी नींद टूट जानी जरूरी है।
मुझे भी अनेक बार लगता है कि मैं कहीं आपको आधी रात में जगाने तो नहीं आ गया हूं। और मुझे भी कई बार लगता है कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि आप बहुत गहरे सोए हों और मैं आपको जगाऊं और आपको तकलीफ और पीड़ा हो। और ऐसा हमेशा हुआ है। जब भी कोई किसी को नींद से जगाता है, तो धन्यवाद देने की बजाय वह गुस्सा और क्रोध से भर जाता है।
हमने क्राइस्ट को सूली दी कि कुछ लोगों को उन्होंने बेवक्त जगा दिया और सुकरात को जहर दे दिया, क्योंकि सोने वाले पसंद नहीं करते कि उनकी नींद टूट जाए। लेकिन जिन्हें जागरण का थोड़ा भी अनुभव होता है, जिन्हें जागरण के आनंद की थोड़ी सी भी ध्वनि मिलती है, उनकी भी एक मजबूरी है, उनकी भी एक विवशता है, वे बिना जगाए नहीं रह सकते।
इसलिए अगर आपकी नींद में मेरी बातों से थोड़ी चोट पहुंचे, और आपको थोड़ा करवट बदलनी पड़े, या आपके भीतर कोई जागरण अनुभव हो, आपके सपने टूट जाएं, तो मुझे क्षमा करना। यह मेरी मजबूरी है कि मैं कुछ आपकी नींद को तोडूं। यह जानते हुए कि नींद टूटना, नींद को तोड़ना दुखद है। लेकिन यह भी जानते हुए कि जिसकी नींद टूट जाती है, वह जब जाग कर देखता है तो उसे पता चलता है कि नींद से बड़ा और कोई दुख न था, नींद से बड़ी और कोई पीड़ा न थी।
-ओशो, अमृत वर्षा, #4 जागरण का आनंद
मेरे अनुभव से :-
द्रष्टा (यानी भीतर की आँख से) होने का चमत्कार यह है कि जब तुम (आँख बंद करके अपने ) शरीर को देखते हो, तो तुम्हारा द्रष्टा अधिक मजबूत होता है। जब तुम अपने विचारों को देखते हो, तो तुम्हारा द्रष्टा और भी मजबूत होता है। और जब अनुभूतियों को देखते हो, तो तुम्हारा द्रष्टा फिर और मजबूत होता है। जब तुमअपनी भाव-दशाओं को देखते हो, तो द्रष्टा इतना मजबूत हो जाता है कि स्वयं बना रह सकता है — स्वयं को देखता हुआ, जैसे किअंधेरी रात में जलता हुआ एक दीया न केवल अपने आस-पास प्रकाश करता है, बल्कि स्वयं को भी प्रकाशित करता है!
लेकिन लोग बस दूसरों को देख रहे हैं, वे कभी स्वयं को देखने की चिंता नहीं लेते। हर कोई देख रहा है — यह सबसे उथले तल परदेखना है — कि दूसरा व्यक्ति क्या कर रहा है, दूसरा व्यक्ति क्या पहन रहा है, वह कैसा लगता है। (और देखा देखी में मृत्यु के पार जा सके ऐसी संपत्ति को खो रहा है, जबकि जीवन उस मृत्यु के पार जा सके ऐसी संपत्ति खोजने के लिए ही मिला है। हर व्यक्ति देख रहा है — देखने की प्रक्रिया कोई ऐसी नई बात नहीं है, जिसे तुम्हारे जीवन में प्रवेश देना है। उसे बस गहराना है — दूसरों से हटाकर स्वयं की आंतरिकअनुभूतियों, विचारों और भाव-दशाओं की ओर करना है — और अंततः स्वयं द्रष्टा की ओर ही इंगित कर देना है।
लोगों की हास्यास्पद बातों पर तुम आसानी से हंस सकते हो, लेकिन कभी तुम स्वयं पर भी हंसे हो? कभी तुमने स्वयं को कुछ हास्यास्पदकरते हुए पकड़ा है? नहीं, स्वयं को तुम बिलकुल अनदेखा रखते हो — तुम्हारा सारा देखना दूसरों के विषय में ही है, और उसका कोईलाभ नहीं है।
अवलोकन की, अवेयरनेस की इस ऊर्जा का उपयोग अपने अंतस के रूपांतरण के लिए कर लो । यह इतना आनंद दे सकती है, इतने आशीष बरसा सकती है कि तुम स्वप्न में भी नहीं सोच सकते। सरल सी प्रक्रिया है, लेकिन एक बार तुम इसका उपयोग स्वयं पर करने लगो, तो यह एक ध्यान बन जाता है।…..किसी भी चीज को ध्यान बनाया जा सकता है!
अवलोकन तो तुम सभी जानते हो, इसलिए उसे सीखने का कोई प्रश्न नहीं है, केवल देखने के विषय को बदलने का प्रश्न है। उसे करीबपर ले आओ। अपने शरीर को देखो, और तुम चकित होओगे।
अपना हाथ मैं बिना द्रष्टा हुए भी हिला सकता हूं, और द्रष्टा होकर भी हिला सकता हूं। तुम्हें भेद नहीं दिखाई पड़ेगा, लेकिन मैं भेद कोदेख सकता हूं। जब मैं हाथ को द्रष्टा-भाव के साथ हिलाता हूं, तो उसमें एक प्रसाद और सौंदर्य होता है, एक शांति और एक मौन होताहै।
तुम हर कदम को देखते हुए चल सकते हो, उसमें तुम्हें वे सब लाभ तो मिलेंगे ही जो चलना तुम्हें एक व्यायाम के रूप में दे सकता है, साथही इससे तुम्हें एक बड़े सरल ध्यान का लाभ भी मिलेगा।-ओशो ध्यानयोग: प्रथम और अंतिम मुक्ति
सांसारिक जीवन जीते हुए ओशो के प्रयोगों को जीवन में उतरकर जो मैंने आध्यात्मिक यात्रा की है उसके अनुभव से कुछ सुझाव:- सांसारिक जीवन को जीवन संपूर्णता के साथ जीना, जीवन को एक प्रामाणिक रूप में जीना यानी भीतर बाहर एक और ईमानदारी से जीना, लोगोंकी बिना भेदभाव के निःस्वार्थ भाव से सेवा करना और सभी बंधनों (धार्मिक, शैक्षिक, जाति, रंग आदि) से मुक्त होना ये तीन मेरे जीवन में महत्वपूर्ण उत्प्रेरक साबित हुए हैं जो किसी को गहराई तक गोता लगाने में मदद कर सकते हैं।
मैंने सुबह दांतों पर ब्रश करते समय प्रयोग के तौर पर शुरू किया गया भीतर की आँख खोलने का प्रयोग या होंश का प्रयोग विचार शून्य अवस्था का अनुभव प्राप्त करने का उपाय ना रहकर, अब होंश का प्रयोग ना मेरे लिए काम करने का तरीका हो गया है। हो सकता है कि आपको भी यह उपयुक्तलगे अन्यथा अधिकांश लोगों के लिए ओशो का सुझाया गतिशील ध्यान है। लगभग 500 साल पहले भारतीय रहस्यवादी गोरखनाथद्वारा खोजी गई और ओशो द्वारा आगे संशोधित की गई 110 अन्य ध्यान तकनीकें हैं जिनका प्रयोग किया जा सकता है, और जिससे लाभ होता दिखे उसका नियमित जीवन में अभ्यास किया जा सकता है। (इसे ओशो की किताब “प्रीतम छवि नैनन बसी”, चेप्टर #11 “मेरा संदेश है, ध्यान में डुबो” से लिया गया है। इस किताब को फ्री पढ़ने के लिए osho.com पर लॉगिन करके Reading>online libravy पर हिन्दी बुक्स सेलेक्ट करें।))
नमस्कार ….. मैं अपनी आंतरिक यात्रा के व्यक्तिगत अनुभवों से अपनी टिप्पणियाँ लिखता हूँ। इस पोस्ट में दुनिया भरके रहस्यवादियों की शिक्षाएँ शामिल हो सकती हैं जिन्हें मैं आज भी मानने लायक समझता हूँ। मेरे बारे में अधिकजानकारी के लिए और मेरे साथ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जुड़ने के लिए, मेरे सोशल मीडिया लिंक से जुड़ने केलिए वेबसाइट https://linktr.ee/Joshuto पर एक नज़र डालें, या मेरे यूट्यूब चैनल की सदस्यता लें और/यापॉडकास्ट आदि सुनें।
Originally published at https://philosia.in on December 19, 2024.